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अवधी कविता (24 अगस्त 2017), मुखपृष्ठ संपादकीय परिवार

धरती के सिरमौर
विकल साकेती

धरती के सिरमौर, अपनी मातृभूमि के ठौर
इतनी सुंदर भारत माँ के तस्वीर है बनी।
उत्तर माँ हिमालय रोज देत है पहरवा
दक्खिन माँ चरन रोज धोवत है सगरवा
नेफा और लद्दाख दूनौ आँखि कै कजरवा
ब्रह्मपुत्र, सिंधु, नर्मदा कै जलधार बा
गंगा जमुना सोहैं जैसे गरे बिच हार बा।
विंधाचल करधनी अस गढ़े बा सोनरवा
दीवाली, दसहरा, होली राखी कै त्योहरवा
गावें सब आल्हाच, फाग, कजरी, मल्ह रवा
बरखा माँ घेरि-घेरि बरसै बदरवा
गर्मी माँ निबिया डोलावत अँचरवा
घरे-घरे कृष्न सोहैं, घरे-घरे राम हैं
चारौ कोनवा पै गोरी। बने चार धाम हैं।
गउना माँ बसे इहाँ, बड़े-बड़े ज्ञानी
तोता मैना गावैं इहाँ, वेदवा कै बानी
तरह-तरह के ज्ञान, मथि-मथि सारा वेद पुरान
गावैं तुलसी, सूर, मीरा और कबीर सजनी
इतनी सुंदर भारत माँ कै तस्वीर है बनी
उत्तर कश्मीर फुलवा कै फुलवारी
नइया पै लहरै के‍सरिया कै क्यारी
आगे है पंजाब पाँचौ नदिया कै पानी
घरे-घरे गूँजै गुरू नानक कै बानी
खुनवा क सींचा जहाँ बाग जलियाना
जूझे जहाँ अमर महान मरदाना
आगे राजस्थान जहाँ बसी बीर बाला
देसवा के कारन जलाई जौहर ज्वाला
उत्तर परदेस जहाँ के दसरथ निवासी
तीरथराज मथुरा अयोध्या औ कासी
बड़े-बड़े वीर जहाँ झूलि गए फाँसी
देसवा कै बड़ी मसहूर भूमि झाँसी
आग है बिहार मीठी बोलिया कै खानी
जनता की खातिर हर जोते राजा रानी
आगे है बंगाल बाबू बोस कै नगरिया
जने-जने बाँधे, बिद्या बुद्धि कै गठरिया
आगे है आसाम, धरती कै एक कोना
बड़े-बड़े तपसी का लगि जाय टोना
रिमझिम बरसै पानी, धरती ओढ़े चुनरी धानी।
बहै धीरे पुरवा समीर सजनी
इतनी सुंदर भारत माता कै तस्वीर है बनी।
दक्खिन ओर चला गोरी। धरती उड़ीसा
पुरी जगन्नाथ, जहाँ बसै जगदीसा
आगे आंध्र प्रांत है, रतन कै जखीरा
दिहिस गोलकुंडा, कोहेनूर अस हीरा
आगे मदरास, नारियलवा कै पानी
लहरै सगरवा कै लहर सुहानी
केरल कै जमीन, चाय बगिया सुहानी
शंकराचार्य भए बड़ा ब्रह्मज्ञानी
आगे महाराष्ट्र, तलवार भवानी
बंबई नगरिया, बनी है रजधानी
चारों ओर लहरे, सगरवा कै पनियाँ
सजी दिन-रात जैसे सजी दुलहिनियाँ
आगे सागर तीर बसा वीर देस गोवा
रहा चार सदी से, गुलामी मा सोवा
लक्षदीप गोवा दमन दीप कै के खाली
भारत के जवनवन से भागे पुर्तगाली
आगे गुजरात, कौनो ऋषि के समाधी
जनमे पटेल, दयानंद और गांधी
आगे मध्य भारत, देसवा कै हिरदैया
केसव औ बिहारी कै कर्म भूमि भैया
अइसन देस हमार, अइसन होली कै त्योहार
उड़े फागुन मा गुलाल औ अबीर सजनी
इतनी सुंदर भारत माँ कै तस्वीर है बनी।

आदिवासी लोक
संपादन : रमणिका गुप्ता

आदिवासी यानी इस धरती के मूल निवासी। सवाल उठता है कि हम जो अपने आपको आधुनिक और शहरी मानते हैं क्या हम इस धरती के मूल निवासी नहीं हैं! क्या हम कहीं और से आए हैं? जाहिर है कि मूल निवासी से आशय यहाँ ऐसे समाजों, कबीलों या लोगों से हैं जिन्होंने अपने भीतर मानव सभ्यता का डीएनए अभी भी छुपा रखा है। उनकी जीवन शैली, उनके मिथक और देवी-देवता, उनके किस्से कहानियाँ, जीवन जीने का सलीका, प्रकृति के साथ दोस्ती और साहचर्य उन सब में मानव सभ्यता की उत्पत्ति और विकास के न जाने कितने संकेत छुपे हुए हैं। आज जब स्टीफेन हाकिंग जैसे वैज्ञानिक अगले सौ सालों में पृथ्वी की समाप्ति की बात कर रहे हैं तो हम तथाकथित आधुनिकों को एक बार अपनी जीवन शैली - जो संसाधनों के ज्यादा से ज्यादा उपभोग पर टिकी है - पर फिर से सोचने की जरूरत है। और उन लोगों को समझने बूझने की जरूरत है जिन्होंने धरती से उपभोग की बजाय उसे सिरजने का रिश्ता रखा है। यह किताब इस दिशा में एक बहुत ही मूल्यवान प्रयास है।

लंबी कहानी
रवींद्र कालिया
काला रजिस्टर

कहानियाँ
गोविंद उपाध्याय
बेटा
धियनिया
झुर्रियों वाला बच्चा
माउस और भैंस

आलोचना
रवि रंजन
त्रिलोचन की काव्यानुभूति की संस्कृति

विमर्श
शीतांशु
भाषा के तराजू पर धर्म का पासंग : गार्सां द तासी
हीनता-ग्रंथि से उद्भूत पुनरुत्थानवादी दृष्टि : मिश्रबंधु
हिंदी साहित्य की परंपरा की चिंता : संदर्भ - फोर्ट विलियम कॉलेज
औपनिवेशिक आधुनिकता और लक्ष्मीसागर वार्ष्णेय की इतिहास-दृष्टि
अस्मिताओं में कैद इतिहास : जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन
व्यंग्य
यशवंत कोठारी
मेरी असफलताएँ
हिंदी की आखिरी किताब

सिनेमा
विमल चंद्र पांडेय
दोस्त का घर और जिम्मेदारी का एहसास : व्हेयर इज माय फ्रेंड्स होम

कविताएँ
अखिलेश कुमार दुबे

संरक्षक
प्रो. गिरीश्‍वर मिश्र
(कुलपति)

 संपादक
प्रो. आनंद वर्धन शर्मा
फोन - 07152 - 252148
ई-मेल : pvctomgahv@gmail.com

समन्वयक
अमित कुमार विश्वास
फोन - 09970244359
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तकनीकी सहायक
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कार्यालय सहयोगी
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ISSN 2394-6687

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